उसको चाहा भी तो इजहार भी ना करना आया
कट गई उम्र हमें प्यार ना करना आया
उसने मांगा भी तो हमसे जुदाई मांगी
और हम थे कि हमें इनकार भी ना करना आया
Hello....
मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ
तू किसी रेल-सी गुज़रती है
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ
हर तरफ़ ऐतराज़ होता है
मैं अगर रौशनी में आता हूँ
एक बाज़ू उखड़ गया जबसे
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ
मैं तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने क़रीब पाता हूँ
कौन ये फ़ासला निभाएगा
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ
काफ़ी नहीं तुम्हारा ईमानदार होना
भैया बड़ा ज़रूरी दूकानदार होना
है वक़्त का तकाज़ा रौ में शुमार होना
मक्खन किशोर होना चमचा कुमार होना
सौजन्य का कदाचित तू मत शिकार होना
सब चाहते हैं वरना तुझ पर सवार होना
चुल्लू में डूबने का अब लद चुका ज़माना
उल्लू से दोस्ती कर क्या शर्मसार होना
लँगड़ा रही है भाषा, कितना अजब तमाशा
घटिया तरीन जी के उँचे विचार होना
कोई अबतक समझ न पाया है,
झिंदगी धुप है या साया है
एक शोला जो बुझने वाला था,
तेरी यादोने फ़िर जलाया है।
वरना आखों में अश्क क्यूँ आते,
कोई अफसाना याद आया है।
झिन्दगानी का एक एक लम्हा,
साथ में गम हझार लाया है।
बाद मुद्दत के एक पल के लिए
मैंने 'आमीन ' उसे भूलाया है।
How do you know the value of day without having an experience of night?
How can you be happy if you (your brain) do not know what is sadness?
To be successful, you must fail..!!
So, embrace all your failures.. they are yours…then see the magic..!!