Saturday, April 6, 2024

 उसको चाहा भी तो इजहार भी ना करना आया

कट गई उम्र हमें प्यार ना करना आया


उसने मांगा भी तो हमसे जुदाई मांगी

और हम थे कि हमें इनकार भी ना करना आया


Wednesday, January 19, 2022

 


    One of the challenges of Human Race is, we resist failures and that is so weird 😊

How can one enjoy the “success” without going through all those not so good failures?
How do you know the value of day without having an experience of night?
How can you be happy if you (your brain) do not know what is sadness?
To be successful, you must fail..!!
So, embrace all your failures.. they are yours…then see the magic..!!

Saturday, March 20, 2021

My Interests and hobby is Sketching, sharing a few here done by me



અમે અમારી રીત પ્રમાણે રાતો ને અજવાળી છે,

તમે ઘરે દીવો સળગાવ્યો અમે જાતને બાળી છે.


દર તહેવારે જીદે ચડતી ઈચ્છાઓ પંપાળી છે,

મનમાં ભીતર હોળી સળગે, ચહેરા પર દિવાળી છે.

 રગ રગ ને રોમ રોમ થી તૂટી જવાય છે

તો પણ મઝાની વાત એ છે કે જીવી જવાય છે...


વરસાદ પણ શું કરી શકે ને છત્રી પણ શું કરે, 

બીજાને કોરો રાખવામાં પલળી જવાય છે.

 मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ 

वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ 


एक जंगल है तेरी आँखों में 

मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ 


तू किसी रेल-सी गुज़रती है 

मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ 


हर तरफ़ ऐतराज़ होता है 

मैं अगर रौशनी में आता हूँ 


एक बाज़ू उखड़ गया जबसे 

और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ 


मैं तुझे भूलने की कोशिश में 

आज कितने क़रीब पाता हूँ 


कौन ये फ़ासला निभाएगा 

मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ


 काफ़ी नहीं तुम्हारा ईमानदार होना

भैया बड़ा ज़रूरी दूकानदार होना


है वक़्त का तकाज़ा रौ में शुमार होना

मक्खन किशोर होना चमचा कुमार होना


सौजन्य का कदाचित तू मत शिकार होना

सब चाहते हैं वरना तुझ पर सवार होना


चुल्लू में डूबने का अब लद चुका ज़माना

उल्लू से दोस्ती कर क्या शर्मसार होना


लँगड़ा रही है भाषा, कितना अजब तमाशा

घटिया तरीन जी के उँचे विचार होना


 मेरी सांसो मे समाया भी बहोत लगता है,

और वही शखस पराया भी बहोत लगता हैं


उससे मिलने की तमन्ना भी बहोत हैं,

लेकीन आने जाने मे किराया भी बहोत लगता है.

झुबा तोह खोल, नजर तो मिला, जवाब तो दे,

मैं कित्नी बार लुटा हु मुझे हिसाब तो दे.


तेरे बदन की लिखावट मे है उतार चढाव

मैं तुजको कैसे पढुंगा, किताब तो दे.

 कूछ नही बदला, दिवाने थे दिवाने ही रहे,

हम नये शहोरे मे रहकर भी पुराने ही रहे.


दीलकी बस्ती मे, हजारों इंकलाब आये मगर,

दर्दके मौसम सुहाने थे, सुहाने ही रहे.


हमने अपनिसी बहोत की, वो नहि पिघला कभी,

उसके होठो पर, बहाने थे बहाने ही रहे.

Wednesday, March 12, 2014

Darek Sambhandh...

દરેક સંબંધમાં ઘણા ફર્ક હોય છે,
ટુંકા વાક્યોને ઘણા અર્થ હોય છે.

એક પણ સવાલ સહેલો હોતો નથી,
ને આપેલા જવાબો માં પણ પ્રશ્નાર્થ હોય છે....!!!

Monday, February 10, 2014

ઊઠાવ કલમ, કાગળ અને.....

ઊઠાવ કલમ, કાગળ અને

કાગળમાં તારી યાદના કિસ્સાઓ લખ મને
ને શક્ય હોય તો પ્રેમના ટહુકાઓ લખ મને

તું નહિજ આવે એ જાણું છું તે છતાં
તારા આવવાના ખોટા ઈરાદાઓ લખ મને

તારા વિના અહીં તો છે ધુમ્મસભર્યું બધે
તારી ગલીમાં છે કેવા તડકાઓ લખ મને

અકળાઈ જાઉં એવા અબોલા ના રાખ તું
તારા જ અક્ષરો વડે ઝગડાઓ લખ મને

તારા વિના બીજા તો સહારા નહીં મળે
અમથા જ તારે હાથે દિલાસાઓ લખ મને

ભૂલી ગયો છું જિંદગીની રાહ સૌ "દિલીપ"
ક્યાં ક્યાં પડ્યા છે તારા પગલાઓ લખ મને...




Monday, July 18, 2011

Wining Partner

કિસ્સો  કેવો સરસ મજાનો છે ,
બેઉ વ્યક્તિ સુખી થયાનો છે
પલડું તારી તરફ નમ્યાનો તને,
મુજને આનંદ ઉપર ગયાનો છેં....

Khalil Dhantejvi

Chot par Chot Sahi, Muhse to kuchch Kaha hi Nahi,
Lekin ye na Samajna ki Dil Dukha hi Nahi,
Jo hua wo Kisi Akhbar me Chchapa hi Nahi,
Jo Chchap Gaya, Aisa to Kuchch Hua hi Nahi....

Kaun Kisko

Kaun Kisko Dilme Jagah Deta Hai,
Ped bhi Sukhe Patte Gira Deta Hai,
Wakif Hai hum Duniyake Rasmo Riwazose,
Ruk jaye Sanse to Apnahi koi Dafna Deta Hai....!!!

Thursday, January 1, 2009

EMOTIONS

लागणी मारी गति-मति छे, लागणी मारो देश
बुद्धि ने हु कही दऊ छू, तू तो मूंगी बेस

फरियाद

फरियाद कर रही है यह तरसी हुई निगाहें
देखे हुए किसीको एक ज़माना गुज़र गया है।

"जौहर'

दौरे हयात आएगा कातिल कज़ा के बाद
है इप्तिदा हमारी तेरी इम्तिहा के बाद,
तुजसे मुकाबिले के किसे ताब है वले
मेरा लहुभी खूब है तेरी हीना के बाद।

"आयुष्य "

तिथे क्षितिजाशि चाले दोन रंगांची लढाई
थोड़ी पश्चीमेची लाली थोडी मुळची नीळाई
ओल्या रेतीत रुतले शंख आणिक शिम्पले
पुढे लाटा मोजताना मागे आयुष्य संपले....

'कतिल'

तुम्हारी अंजुमन से उठ कर दीवाने कहाँ जाते
जो वाबस्ता हुए तुमसे वो अफ़साने कहाँ जाते।
निकलकर देशे - काबा से अगर मिलता न मैखाना
तो ठुकराए हुए इंसा खुदा जाने कहाँ जाते।
तुम्हारी बेरुखी ने लाज रख ली बादाखाने की
तुम आँखों से पिला देते तो पैमाने कहाँ जाते।
चलो अच्छा हुआ काम आ गई दीवानगी अपनी
वरना हम झमाने-भर को समझाने कहाँ जाते।
'कतील' अपना मुकद्दर गम से बेगाना अगर होता
तो फ़िर अपने पराये हम से पहचाने कहाँ जाते।

आमीन ई. झीना

कोई अबतक समझ न पाया है,

झिंदगी धुप है या साया है

एक शोला जो बुझने वाला था,

तेरी यादोने फ़िर जलाया है।

वरना आखों में अश्क क्यूँ आते,

कोई अफसाना याद आया है।

झिन्दगानी का एक एक लम्हा,

साथ में गम हझार लाया है।

बाद मुद्दत के एक पल के लिए

मैंने 'आमीन ' उसे भूलाया है।