

























Hello....
मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ
तू किसी रेल-सी गुज़रती है
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ
हर तरफ़ ऐतराज़ होता है
मैं अगर रौशनी में आता हूँ
एक बाज़ू उखड़ गया जबसे
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ
मैं तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने क़रीब पाता हूँ
कौन ये फ़ासला निभाएगा
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ
काफ़ी नहीं तुम्हारा ईमानदार होना
भैया बड़ा ज़रूरी दूकानदार होना
है वक़्त का तकाज़ा रौ में शुमार होना
मक्खन किशोर होना चमचा कुमार होना
सौजन्य का कदाचित तू मत शिकार होना
सब चाहते हैं वरना तुझ पर सवार होना
चुल्लू में डूबने का अब लद चुका ज़माना
उल्लू से दोस्ती कर क्या शर्मसार होना
लँगड़ा रही है भाषा, कितना अजब तमाशा
घटिया तरीन जी के उँचे विचार होना