Thursday, January 1, 2009

EMOTIONS

लागणी मारी गति-मति छे, लागणी मारो देश
बुद्धि ने हु कही दऊ छू, तू तो मूंगी बेस

फरियाद

फरियाद कर रही है यह तरसी हुई निगाहें
देखे हुए किसीको एक ज़माना गुज़र गया है।

"जौहर'

दौरे हयात आएगा कातिल कज़ा के बाद
है इप्तिदा हमारी तेरी इम्तिहा के बाद,
तुजसे मुकाबिले के किसे ताब है वले
मेरा लहुभी खूब है तेरी हीना के बाद।

"आयुष्य "

तिथे क्षितिजाशि चाले दोन रंगांची लढाई
थोड़ी पश्चीमेची लाली थोडी मुळची नीळाई
ओल्या रेतीत रुतले शंख आणिक शिम्पले
पुढे लाटा मोजताना मागे आयुष्य संपले....

'कतिल'

तुम्हारी अंजुमन से उठ कर दीवाने कहाँ जाते
जो वाबस्ता हुए तुमसे वो अफ़साने कहाँ जाते।
निकलकर देशे - काबा से अगर मिलता न मैखाना
तो ठुकराए हुए इंसा खुदा जाने कहाँ जाते।
तुम्हारी बेरुखी ने लाज रख ली बादाखाने की
तुम आँखों से पिला देते तो पैमाने कहाँ जाते।
चलो अच्छा हुआ काम आ गई दीवानगी अपनी
वरना हम झमाने-भर को समझाने कहाँ जाते।
'कतील' अपना मुकद्दर गम से बेगाना अगर होता
तो फ़िर अपने पराये हम से पहचाने कहाँ जाते।

आमीन ई. झीना

कोई अबतक समझ न पाया है,

झिंदगी धुप है या साया है

एक शोला जो बुझने वाला था,

तेरी यादोने फ़िर जलाया है।

वरना आखों में अश्क क्यूँ आते,

कोई अफसाना याद आया है।

झिन्दगानी का एक एक लम्हा,

साथ में गम हझार लाया है।

बाद मुद्दत के एक पल के लिए

मैंने 'आमीन ' उसे भूलाया है।